अब हम यहाँ UPSC की उस नीति को समझते हैं, जिसका संबंध परीक्षा में बैठने के लिए न्यूनतम अंक निर्धारित नहीं करने से है। इसे समझाने के लिए मैं सन् 1994 के उस एक किस्से की चर्चा करना चाहूँगा, जब डॉ. शंकरदयाल शर्मा हमारे राष्ट्रपति थे और मैं उनका निजी सचिव। सिविल सर्वेन्ट फ्रेंक नरोन्हा राष्ट्रपति जी के उप प्रेस सचिव थे, जो प्रेस सचिव के अधीन काम कर रहे थे। फ्रेंक नरोन्हा बहुत एकेडेमिक किस्म के व्यक्ति थे, और कुछ-कुछ फिलॉसफर जैसे भी। कुछ समय बाद फ्रेंक को लगने लगा कि यहाँ उनकी प्रतिभा का सही उपयोग नहीं किया जा रहा है।
एक दिन लंच के समय हम दोनों राष्ट्रपति जी के संयुक्त सचिव सुधीर नाथ जी के पास बैठे हुए थे। सुधीर नाथ जी बहुत ही बेहतरीन, योग्य एवं मध्यप्रदेश कैडर के बहुत लोकप्रिय अफसर थे। फ्रेंक नरोन्हा ने सुधीर नाथ जी के सामने जब अपने दिल के इस दर्द को बयां किया, तो उन्होंने छूटते ही जवाब दिया था कि ‘तो फिर तुम यहाँ कर क्या रहे हो। सिविल सर्विस को ज्ञानियों की नहीं सामान्यियों की जरूरत है।’’
सुधीर नाथ जी के इस उत्तर में आप अपने इस तरह के कुछ प्रश्नों के उत्तर आसानी से पा सकते हैं –
- क्यों इस परीक्षा के न्यूनतम योग्यता के रूप में स्नातक में न्यूनतम प्राप्तांक की सीमा निर्धारित नहीं की गई है। दूसरे शब्दों में यह कि ‘क्यों थर्ड डिविजनर को भी आई.ए.एस. बनने के योग्य माना जाता है।
- इस परीक्षा की तैयारी में पुस्तकीय ज्ञान अर्थात् ऐकेडेमिक एक्सीलेंस का कितना रोल है ?
- मुझे इस परीक्षा के लिए कैसे अपने-आपको तैयार करना है?
वैसे आपको इस घटना से अपने इस भ्रम को भी दूर करने में मदद मिल सकती है, यदि ऐसा कुछ है तो, कि यदि आपकी प्रवृत्ति अकादमिक किस्म की है, तो आपको इसमें जाना चाहिए या नहीं। खैर।
अब हम आते हैं – इसको सुपर स्टार की वैल्यू देने वाले दूसरे मुख्य तत्व पर। यह तत्व इसकी विशालता, इसकी उदारता से जुड़ा हुआ है। इस परीक्षा की बाहें इतनी लम्बी हैं कि यह सभी को अपने में समेटने को आतुर रहता है। इसके द्वार पर सभी का स्वागत है। इसका आमंत्रण-पत्र सभी के नाम पर है। यह एक ऐसा महासागर है, जिसमें न जाने कितनी तरफ से आने वाली कितनी सारी नदियां आ-आकर अपना जल उड़ेलती रहती हैं। ‘प्रवेश निषेध’ की तख्ती का यहाँ अस्तित्व ही नहीं है।
आप यहाँ आइये। यहाँ के खेल में शामिल होइये। स्वयं को विजेता घोषित कराकर आई.ए.एस. बन जाइये।
इसका अर्थ यह हुआ कि इस परीक्षा का सफल युवा किसी एक शाखा विशेष का ही विजयी नहीं होता है, बल्कि वह समस्त शाखाओं का विजयी होता है।
टॉपर से बॉटम तक के तथा देश भर के सभी विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों एवं संस्थानों के युवाओं के लिए उन्मुक्त द्वार की इस नीति ने इसे देश की अन्य सभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तुलना में एक अलग ही चमक तथा प्रेस्टिज प्रदान कर दी है।
और यही इस परीक्षा में सफल होने के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी है। इन दोनों महत्वपूर्ण
चुनौतियों की समझ का अभाव आपकी तैयारी की पूर्णता के रास्ते में एक बाधा सिद्ध होगी, ऐसा मेरा मानना है।
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